31/07/2018

  • "पॉश किचन"
    रीमा ने आज
    किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले।
    पुराने डिब्बे.. प्लास्टिक के डिब्बे...पुराने डोंगे,कटोरियां प्याले, थालीयां...
    सब कुछ काफी पुराना हो चुका था।
    सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने मे रख दिये
    और नये लाये बर्तन करीने से रखकर सजा दिये।
    बडा ही पॉश लग रहा था अब किचन.......
    अब ये जूना पुराना सामान भंगार वाले को दे दिया तो समझो हो गया काम...
    इतने मे रीमा की काम वाली शबाना आयी।
    दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करनेवाली ही थी कि उसकी लादी नजर कोने मे पडे बर्तनो पर गयी,
    "बापरे !!


आज इतने सारे बर्तन घिसने होगे मैडम ?"...
उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हुआ।
रीमा बोली "अरी नही... भंगारवाले को देने है "
शबाना ने ये सुना और
उसकी आँखे एक आशासे चमक उठी....
"मैडम , ...
आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मै ले लूं ?..(शबाना की आँखौंके सामने उसका तलहटी मे पतला हुआ और किनारे से चीर पडा पतीला आ रहा था।)
रीमा बोली "अरी एक क्यों ?
जितना रखा है कोने मे, वो सबकुछ ले जा,
उतना ही पसारा कम होगा"
"सब कुछ!!".....सब कुछ ? शबाना की आँखे फैली... उसे तो जैसे अलीबाबा की गुफा ही मिली....
उसने अपना काम फटाफट खत्म किया ...
सभी पतीली....डिब्बे डूबे...प्याले सबकुछ थैले मे भर लिया...


और बडे उत्साह से घर के ओर निकली...
आज जैसे उसे चार पांव लग गये थे ...
घर आते ही उसने पानी भी न पिया अपना जूना पुराना टूटने के कगार पर आया पतीला ... टेढा मेढा चमचा... सब एक कोने मे जमा किया,
और अभी लाया हुआ खजाना ठीक से जमा दिया ....
आज उसके एक कमरे वाला किचन का कोना पॉश दिख रहा था....
तभी उसकी नजर अपने जूने पुराने बरतनों पर गिरी ... और खुद ही से बुदबुदायी "अब ये जूना सामान भंगारवाले को दे दिया कि समझो हो गया काम"...
तभी दरवाजे पर एक भिखारी
पानी मांगता हुआ हाथों की अजुंल कर खडा था ...
"माँ पानी दे"
शबाना उसके हाथोैं की अंजूल मे पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला नजर आया।
शबाना ने वो पतीला भर पानी भिखारी को दिया।
पानी पीकर तृप्त हो वह बरतन वापिस करने लगा ....
शबाना बोली. ..."फेंक दो कहीं भी"
वो भिखारी बोला "तुम्हे नही चाहिये???
मै रख लूँ मेरे पास?"
शबाना बोली" रख लो...और ये बाकी बचा भी ले जाओ "
और उसने जो जो भंगार समझा
वो उस भिखारी के झोले मे डाल दिया।
वो भिखारी खुश हो गया...
पानी पीने को पतीला.... किसी ने दिया तो
चावल, सब्जी, दाल लेने के लिये अलग अलग छोटे बडे बर्तन... और कभी मन हुआ की चम्मच से खाये तो एक टेढामेढा चम्मच भी था....
आज ऊसकी फटी झोली पॉश दिख रही थी .. .!!!!
"पॉश" शब्द की व्याख्या जो मैं समझ पाया इस कहानी & #2360;े वो ये है कि
सुख किसमें माने .......
ये हर किसी के परिस्थिती पर अवलंबित होता है।

Haresh mangukiya